धीमी बारिश की लय में अहवाल सुनाते रहना उस का एक झरोके में फिर शाल सुखाते रहना जाने किस की याद आती है साहिल साहिल जा कर रेत पे ज़ख़्मी पोरों से अश्काल बनाते रहना रब्त इक शय कलियों से कोमल और हवाएँ मूरख टूटे उस के तार तो क्या सुर-ताल मिलाते रहना क्या जाने कब लम्हों की मफ़रूर समाअत लौटे अच्छी अच्छी आवाज़ों के जाल बिछाते रहना अपनी तो मीरास यही है रात गवाही देगी दिन के आरिज़ शाम सवेरे लाल बनाते रहना उस ने तो आते रहना है सेहन में रम करने को रोज़ ग़ज़ाल-ए-दर्द के माथे ख़ाल लगाते रहना