धोका भी नहीं था कोई उनवाँ भी नहीं था ऐसे में जिए जाने का इम्काँ भी नहीं था क्या जानिए क्या सोच के वाँ डूब गए हम दरिया में तो इस दम कहीं तूफ़ाँ भी नहीं था आबाद सराबों से सदा इस का जहाँ था सहरा मिरे दिल सा कभी वीराँ भी नहीं था इक बात थी ये हम उसे सोचें कि न सोचें हाँ इस के सिवा मसअला-ए-जाँ भी नहीं था ये जान के वो रक़्स किया अहल-ए-जुनूँ ने जो हाथ लगा उन के गरेबाँ भी नहीं था हर साँस निकलती है तिरी याद में डूबी और भूल के जीना तुझे आसाँ भी नहीं था कुछ फूल शगुफ़्ता मिरे होंटों पे सजे हैं आईना मुझे देख के हैराँ भी नहीं था फूलों के लहू से ये चमन-ज़ार था रौशन गुलशन में कहीं ख़ार-ए-मुग़ीलाँ भी नहीं था है बात बड़ी जान मिरी काम तो आई वो क़त्ल मुझे कर के पशेमाँ भी नहीं था इन मस्त निगाहों के इशारों को समझना मुश्किल भी नहीं था कोई आसाँ भी नहीं था दुनिया ये भला क्यूँ मिरे क़दमों में पड़ी है मैं इस के लिए इतना परेशाँ भी नहीं था पलकों को सिखा देते रह-ओ-रस्म भी 'ख़ालिद' थी हिज्र की शब और चराग़ाँ भी नहीं था