धोके पे धोका इस तरह खाते चले गए हम दुश्मनों को दोस्त बनाते चले गए हर ज़ख़्म-ए-ज़िंदगी को गले से लगा लिया हम ज़िंदगी से यूँही निभाते चले गए वो नफ़रतों का बोझ लिए घूमते रहे हम चाहतों को उन पे लुटाते चले गए जो ख़्वाब ज़िंदगी की हक़ीक़त न बन सका उस के हसीं फ़रेब में आते चले गए 'रूबी' छुपाना दर्द को आसाँ न था मगर हम आड़ में हँसी की छुपाते चले गए