धूप की शिद्दत में नंगे पाँव नंगे सर निकल ऐ दिल-ए-सादा सवाद-ए-जब्र से बाहर निकल कल का सूरज शाद-कामी की ख़बर दे या न दे छोड़ अंदेशे हिसार-ए-ज़ात से बाहर निकल मैं कई सदियों से गुम हूँ ख़्वाब के सकरात में आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-बेदारी मिरे सर पर निकल साहिलों पर तेरे इस्तिक़बाल को आया है कौन डूबने वाले उभर फिर सत्ह-ए-दरिया पर निकल अहद दार-ओ-गीर है अपना तशख़्ख़ुस गुम न कर सोच की सारी फ़सीलें तोड़ कर बाहर निकल तीसरी दुनिया मुनव्वर हो मिरे अफ़्कार से मेहर-ए-आज़ादी मिरे एहसास के अंदर निकल अपने ख़द-ओ-ख़ाल देखूँ मैं भी ऐ सुल्तान-'रश्क' मेरी आँखों से मगर ऐ ख़्वाब के मंज़र निकल