धूप लुटा कर अम्बर जब कंगाल हुआ चाँद उगा कर फिर से माला-माल हुआ साँझ फिसल कर डेवढ़ी पर आ लटकी है आँगन से चौबारे तक सब लाल हुआ याद वहीं ठिठकी है जहाँ तुम छोड़ गए लम्हा दिन सप्ताह महीना साल हुआ धूप अटक कर बैठा गई है छज्जे पर ओसारे का उठना आज मुहाल हुआ चुन चुन कर वो देता था हर दर्द मुझे चोट लगी जब ख़ुद को तो बेहाल हुआ कल तक जो देता था उतर प्रश्नों का आज वही उलझा सा एक सवाल हुआ छुटपन में जिस की संगत थी चैन मिरा उम्र बढ़ी तो वो जी का जंजाल हुआ