धूप से जिस्म बचाए रखना कितना मुश्किल है

धूप से जिस्म बचाए रखना कितना मुश्किल है
ख़ुद को साए साए रखना कितना मुश्किल है

ज़ाहिर में जो रस्ता सीधा लगता हो उस पर
अपने पैर जमाए रखना कितना मुश्किल है

आवाज़ों की भीड़ में इतने शोर-शराबे में
अपनी भी इक राय रखना कितना मुश्किल है

हम से पूछो हम दिल को समझाया करते थे
वहशी को समझाए रखना कितना मुश्किल है

सिर्फ़ परिंदे को मालूम है तेज़ हवाओं में
अपने पर फैलाए रखना कितना मुश्किल है

आज की रात हवाएँ बेहद सरकश लगती हैं
आज चराग़ जलाए रखना कितना मुश्किल है

दोस्तियों और दुश्मनियों की ज़द में रह के 'नसीम'
अपना-आप बचाए रखना कितना मुश्किल है


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