धूप सी उम्र बसर करना है By Ghazal << तुम्हें इस दिल से क्या आद... उन को मेरे ज़ब्त-ए-ग़म से... >> धूप सी उम्र बसर करना है एक दीवार को सर करना है आँख तो सिर्फ़ शहादत देगी दिल को तस्दीक़-ए-सहर करना है अब फ़सीलों पे उगाना है गुलाब फ़ौज को शहर-बदर करना है सिर्फ़ जुगनू सा चमकना है 'शहाब' कब मुझे कार-ए-ख़िज़र करना है Share on: