धुआँ सा कोई हवाओं में सरसराएगा कुछ फिर इस के ब'अद तुझे भी नज़र न आएगा कुछ मैं जानता हूँ कहाँ तक है दस्तरस उस की जो बीत जाए वही सब पे आज़माएगा कुछ फ़सील-ए-संग की महदूदियत हलाकत है उड़ा दे ख़ुद को हवा में तो सनसनाएगा कुछ तू पानियों में ज़रा ऐसे हाथ पाँव न मार निकलना दूर रहा और डूब जाएगा कुछ