ढूँढती हैं अजनबी परछाइयाँ खिड़कियों से झाँकती तन्हाइयाँ चुन रही है कुंज-ए-बिस्तर से नज़र इत्र में लिपटी हुई अंगड़ाइयाँ इक तरफ़ सारा अदब और इक तरफ़ देवमालाई सी कुछ रुस्वाइयाँ दश्त-ए-जाँ में इस क़दर मिट्टी उड़ी भर गईं आँखों की गहरी खाइयाँ रात निकला था सड़क पर घूमने नंगी भूकी थीं कई सच्चाइयाँ