दीबाचा-ए-किताब फ़रिश्ते से खो गया मज़मून-ए-आँ-जनाब फ़रिश्ते से खो गया तहरीर जो किया था हमारे सवाल पर यज़्दाँ का वो जवाब फ़रिश्ते से खो गया हम को पयम्बरी की बशारत नहीं मिली इल्हाम का वो ख़्वाब फ़रिश्ते से खो गया सरज़द हुई थीं नश्शे में हम से भी नेकियाँ वो दफ़्तर-ए-हिसाब फ़रिश्ते से खो गया कौसर से भर के साक़ी ने भेजा था हम को जो मश्कीज़ा-ए-शराब फ़रिश्ते से खो गया आशिक़ ने कोह-ए-तूर पे खोया है होश यूँ महबूब का नक़ाब फ़रिश्ते से खो गया इंजील-ए-पाक में तो हमारा भी ज़िक्र था आयात का वो बाब फ़रिश्ते से खो गया