दीबाचा-ए-किताब-ए-वफ़ा है तमाम उम्र इक लम्हा-ए-शुऊर-ए-फ़ना है तमाम उम्र महरूमियों ने साथ दिया है तमाम उम्र इक दर्द है कि दिल में रहा है तमाम उम्र क्यूँ मेरे लब पे आई ग़म-ए-आगही की बात गुस्ताख़ी-ए-ख़िरद की सज़ा है तमाम उम्र याद-ए-ख़ुदा में जी न लगा है ये और बात ख़ौफ़-ए-ख़ुदा तो दिल में रहा है तमाम उम्र आ ख़ल्वत-ए-'सरोश' में ऐ मर्ग-ए-ना-गहाँ तेरा ही इंतिज़ार किया है तमाम उम्र