दिल बचे क्यूँकर बुतों की चश्म-ए-शोख़-ओ-शंग से अपना घर तो सूझता है सैकड़ों फ़रसंग से एक भी निकले न मेरी सी फ़ुग़ान-ए-दिल-ख़राश गरचे ख़ूँ टपके गुलू-ए-मुर्ग़-ए-ख़ुश-आहंग से छुप के बैठेगा कहाँ तू हम से ऐ रंगीं-नवा होगा तू जिस रंग में मिल जाएँगे उस रंग से बल बे-बारीकी कि गोया हर तिरा तार-ए-सुख़न जंतरी में खिंच के निकला है दहान-ए-तंग से ऐ तग़ाफ़ुल-केश जल्दी आ कि तू वाक़िफ़ नहीं इस दिल-ए-बेताब ओ जान-ए-मुज़्तरिब के ढंग से जोश-ए-गिर्या से रही बरसात बरसों पर कभी उस की तेग़-ए-तेज़ आलूदा न देखी ज़ंग से मेरे गिर्ये के असर से हो गए पत्थर भी आब झड़ते हैं जा-ए-शरर पानी के क़तरे संग से पहले ये नीयत वज़ू की है नमाज़-ए-इश्क़ में दिल से कह दीजे कि धोवे हाथ नाम ओ नंग से 'ज़ौक़' ज़ेबा है जो हो रीश-ए-सफ़ेद-ए-शैख़ पर वसमा आब-ए-बंग से मेहंदी मय-ए-गुल-रंग से