दिल भी एहसासात भी जज़्बात भी कम नहीं हैं हम पे इल्ज़ामात भी रोक दो ये रौशनी की तेज़ धार मेरी मिट्टी में गुँधी है रात भी मुक़तदी मेरे सभी मैं हूँ इमाम हैं कमाल-ए-इश्क़ के दर्जात भी चाँद अपने आप को कहते हो तुम आओ देखें हो गई है रात भी दूर तक हम भीगते चलते रहे देर तक होती रही बरसात भी साथ चलने में परेशानी भी है हाथ में थामे हुए हैं हाथ भी