दिल धुआँ देने लगे आँख पिघलने लग जाए तुम जिसे देख लो इक बार वो जलने लग जाए रक़्स करती हैं कई रौशनियाँ कमरे में उस का चेहरा न कहीं रंग बदलने लग जाए तेज़-रफ़्तारी-दुनिया न बदल दे मेआर शाम के साथ कहीं उम्र न ढलने लग जाए रौशनी में तिरी रफ़्तार से करता हूँ सफ़र ज़िंदगी मुझ से कहीं तेज़ न चलने लग जाए रिसता पानी भी ग़नीमत है वो दिन दूर नहीं रौज़न-ए-चश्म से जब रेत निकलने लग जाए रेग-ए-सहरा है तिरे जिस्म के सोने की मिसाल आँख फ़िस्ले तो कभी पाँव फिसलने लग जाए शाख़-ए-दिल काट के मिट्टी में दबा दी हम ने काश ऐसा हो कि ये फूलने-फलने लग जाए हम भी हंगामा-ए-बाज़ार-ए-जहाँ से गुज़रे जैसे 'ज़ीशान' कोई नींद में चलने लग जाए