दिल गया दिल का निशाँ बाक़ी रहा दिल की जा दर्द-ए-निहाँ बाक़ी रहा कौन ज़ेर-ए-आसमाँ बाक़ी रहा नेक-नामों का निशाँ बाक़ी रहा हो लिए दुनिया के पूरे कारोबार और इक ख़्वाब-ए-गिराँ बाक़ी रहा रफ़्ता रफ़्ता चल बसे दिल के मकीं अब फ़क़त ख़ाली मकाँ बाक़ी रहा चल दिए सब छोड़ कर अहल-ए-जहाँ और रहने को जहाँ बाक़ी रहा कारवाँ मंज़िल पे पहुँचा उम्र का अब ग़ुबार-ए-कारवाँ बाक़ी रहा मिल गए मिट्टी में क्या क्या मह-जबीं सब को खा कर आसमाँ बाक़ी रहा मिट गए बन बन के क्या क़स्र ओ महल नाम को इक ला-मकाँ बाक़ी रहा आरज़ू ही आरज़ू में मिट गए और शौक़-ए-आस्ताँ बाक़ी रहा ऐश ओ इशरत चल बसे दिल से 'ज़हीर' दर्द ओ ग़म बहर-ए-निशाँ बाक़ी रहा