दिल है अपना तो ग़म पराए हैं हाए क्या क्या फ़रेब खाए हैं तार अश्कों का किस तरह टूटे हम भी इक बार मुस्कुराए हैं तकिया था ज़ाद-ए-राह पर अपना राहज़न कितने काम आए हैं मैं ये समझा था हम-सफ़र होंगे आह कितने मुहीब साए हैं भूल बैठे हूँ वो कहीं ऐ दिल आज क्यूँ इतने याद आए हैं