दिल है बहर-ए-बे-कराँ दिल की उमंग चार मौज चार सू है चार रंग मौज-ए-अव्वल है जुज़-ओ-कुल में मुहीत सर-ब-सर किब्र-ओ-मिना का रंग-ढंग है तसव्वुर दोयमी मौज-ए-ख़याल फ़र्श से ता-अर्श जिस की है तरंग सोयमी है अक़्ल महदूद-ओ-सलीम मानते हैं जिस का लोहा सब दबंग दिल की है मौज-ए-चहारुम वाहिमा दम-ब-दम जिस की अनोखी है उमंग चार दाँग-ए-आलम-ए-ईजाद में चार मौजें हैं बहम और ख़ाना-जंग जान की तहरीक से है सब नुमूद ख़्वाह दिल है ख़्वाह है दिल की उमंग हैं इसी तहरीक में आख़िर फ़ना शम्अ की लौ में फ़ना जैसे पतंग अक़्ल की सैक़ल से हो जाता है पाक दिल के आईने को जब लगता है ज़ंग इल्म में है हस्ती-ए-दिल बे-सबात जैसे 'साहिर' आब-ए-दरिया में तरंग