दिल है कि हमें फिर से उधर ले के चला है उम्मीद से फिर रिश्ता-ए-जाँ बाँध लिया है आहट पे न चौंको कि न आएगी यहाँ मौत दस्तक पे न जाओ कि ये आवारा हुआ है अब संग मुदावा नहीं आशुफ़्ता-सरी का याँ संग से भी फोड़ के सर देख लिया है क्या कीजिए हर काविश-ए-दरमाँ हुई महदूद हर जादा-ए-इमकाँ है कि मसदूद हुआ है ज़िंदा हैं बहर-तौर कि मरना नहीं बस में ता-उम्र हमारे लिए जीने की सज़ा है ऐ दिल कभी पत्थर भी कहीं मोम हुए हैं जो ख़्वाब में देखा है कहीं सच भी हुआ है