दिल है तुम्हारी याद की दुनिया लिए हुए मैं भी हूँ एक हुस्न-ए-सरापा लिए हुए मुझ को किया तबाह तिरे इल्तिफ़ात ने ये रौशनी थी कितना अंधेरा लिए हुए वो काश एक बार ख़ुदा को पुकारते डूबे जो नाख़ुदा का सहारा लिए हुए ऐ ख़ामुशी गुज़र भी हद-ए-एहतियात से मुद्दत हुई है नाम किसी का लिए हुए अब ज़िंदगी न खाएगी कोई नया फ़रेब अब दिल नहीं किसी की तमन्ना लिए हुए आए अगर बहार चमन में तो ख़ुश न हो जाएगी रंग-ओ-बू का जनाज़ा लिए हुए दिल में है बज़्म-ए-हुस्न भी फ़िरदौस-ए-इश्क़ भी है इक लहू की बूँद भी क्या क्या लिए हुए कुछ ऐसे ग़म-ज़दा भी हैं दुनिया में ऐ 'ख़लिश' रोते हैं जो हँसी का सहारा लिए हुए