दिल हम ने जो चश्म-ए-बुत-ए-बेबाक से बाँधा फिर नश्शा-ए-सहबा से न तिरयाक से बाँधा उस ज़ुल्फ़ से जब रब्त हुआ जी को तो हम ने शाने का तसव्वुर दिल-ए-सद-चाक से बाँधा देखा न क़द-ए-सर्व को फिर हम ने चमन में जिस दिन से दिल उस क़ामत-ए-चालाक से बाँधा जो आहू-ए-दिल भा गया उस सद-फ़गन को झप उस ने उसे काकुल-ए-पेचाक से बाँधा और जो न पसंद आया उसे वो तो 'नज़ीर' आह ने सैद किया उस को न फ़ितराक से बाँधा