दिल हो आवारा मगर अक़्ल ठिकाने से रहे हम ये आदाब मोहब्बत के निभाने से रहे इन दिनों नाज़ उठाने का नहीं है यारा हम तो ख़ुद से हैं ख़फ़ा उन को मनाने से रहे हिज्र की धूप ने आँखों में नमी तक न रखी अब तिरी याद में हम अश्क बहाने से रहे है ज़माने को मोहब्बत का तक़ाज़ा हम से हम जो महरूम-ए-मोहब्बत ही ज़माने से रहे दिल है 'वासिक़' तिरा पागल इसे समझा लेना ख़ैरियत चाहे जो अपनी तो ठिकाने से रहे