दिल जल रहा था ग़म से मगर नग़्मा-गर रहा जब तक रहा मैं साथ मिरे ये हुनर रहा सुब्ह-ए-सफ़र की रात थी तारे थे और हवा साया सा एक देर तलक बाम पर रहा मेरी सदा हवा में बहुत दूर तक गई पर मैं बुला रहा था जिसे बे-ख़बर रहा गुज़री है क्या मज़े से ख़यालों में ज़िंदगी दूरी का ये तिलिस्म बड़ा कारगर रहा ख़ौफ़ आसमाँ के साथ था सर पर झुका हुआ कोई है भी या नहीं है यही दिल में डर रहा उस आख़िरी नज़र में अजब दर्द था 'मुनीर' जाने का उस के रंज मुझे उम्र भर रहा