दिल जलाया तिरी ख़ुशी के लिए या ख़ुद अपनी ही आगही के लिए हाथ पर रख के अपनी रूह-ए-तपाँ हम चले अपनी रहबरी के लिए नूर की महफ़िलों में रहते हैं जो तरसते हैं रौशनी के लिए कितने आलाम सह गए हम लोग एक बे-नाम सी हँसी के लिए आब-ए-हैवाँ भी गर मिले तो न लें अपने मेआ'र-ए-तिश्नगी के लिए फिर कोई क़हर हज़रत-ए-यज़्दाँ कोई तहरीक बंदगी के लिए