दिल जो आईना सा नहीं होता यार जल्वा-नुमा नहीं होता सब्र कर सब्र ऐ दिल-ए-महज़ूँ इस मोहब्बत में क्या नहीं होता गो नसीम-ए-सहर है आह मिरी ग़ुंचा-ए-दिल तो वा नहीं होता मुर्ग़-ए-बिस्मिल सा क्यूँ न मैं तड़पूँ दर्द राहत-फ़ज़ा नहीं होता क्यूँ करूँ जा के मैं उसे सज्दा बुत-ए-काफ़िर ख़ुदा नहीं होता होता नाम-ओ-निशाँ का गर तालिब मैं तिरा नक़्श-ए-पा नहीं होता क्यूँ दिल आता तुम्हारे दर पे सनम गरचे शौक़-ए-लिक़ा नहीं होता इश्क़ होता नहीं तो पेश-ए-नज़र जल्वा-ए-हक़-नुमा नहीं होता सर कटाने से हो गई राहत इश्क़ का ये मज़ा नहीं होता मुझ से दर-पर्दा है तुझे उल्फ़त मुझ को ये हौसला नहीं होता दिल को क्यूँ कर 'जमीला' मैं फेंकूँ किसी सूरत जुदा नहीं होता