दिल का ग़म से ग़म का नम से राब्ता बनता गया धीरे धीरे बारिशों का सिलसिला बनता गया दर्द-ओ-ग़म सहने की आदत इस क़दर पुख़्ता हुई हारना आख़िर हमारा मश्ग़ला बनता गया एक इक कर के बहुत दुख साथ मेरे हो लिए मरहला-दर-मरहला इक क़ाफ़िला बनता गया ज़ब्त का दामन जो छूटा हाथ से मेरे तो फिर मेरा चेहरा कर्ब का इक आइना बनता गया हर तरफ़ फैला हुआ था बे-यक़ीनी का धुआँ ख़ुद-बख़ुद 'फ़ारूक़' फिर इक रास्ता बनता गया