दिल का गुलाब मैं ने जिसे चूम कर दिया उस ने मुझे बहार से महरूम कर दिया अब फूल क्या खिलें कि जहाँ पत्तियाँ नहीं मौसम ने शाख़ शाख़ को मस्मूम कर दिया घर-बार छोड़ कर वो फ़क़ीरों से जा मिले चाहत ने बादशाहों को महकूम कर दिया इन आँसुओं से दिल की तपिश और बढ़ गई बारिश ने और भी मुझे मग़्मूम कर दिया ये आरज़ू है उस पे कोई ना'त लिख सकूँ जिस ने गुनाहगार को मासूम कर दिया 'अंजुम' जनाब-ए-मीर का ये फ़ैज़-ए-ख़ास है हम ने भी अपने दर्द को मंज़ूम कर दिया