दिल कहाँ होता है हर एक उजड़ने वाला वो बिगड़ता है फ़क़त जो हो बिगड़ने वाला छूट दे रक्खी थी मैं ने उसे जो चाहे कहे मुझ को प्यारा था बहुत मुझ से झगड़ने वाला नौहे सुनती हूँ मैं शोअ'रा के तो सर धुनती हूँ काश होता कोई मेरा भी बिछड़ने वाला आँधियाँ हार के जाती हैं किसी दम 'अफ़्शाँ' ख़ेमा हर एक नहीं होता उजड़ने वाला