दिल के आईने में नित जल्वा-कुनाँ रहता है हम ने देखा है तू ऐ शोख़ जहाँ रहता है कोई दिन घर से न निकले है अगर वो ख़ुर्शीद मुंतज़िर शाम तलक एक जहाँ रहता है झाड़ दामन के तईं मार के ठोकर निकले कहीं रोके से भी वो सर्व-ए-रवाँ रहता है गाहे माहे ऐ मह-ए-ईद इधर भी तो गुज़र रोज़ ओ शब बज़्म में तेरा ही बयाँ रहता है बावजूद-ए-कि मुझे रब्त-ए-दिली है उस से ये न पूछा कभू 'ईमान' कहाँ रहता है