दिल के अरमान दिल को छोड़ गए आह मुँह इस जहाँ से मोड़ गए वो उमंगें नहीं तबीअत में क्या कहें जी को सदमे तोड़ गए बादा-ए-बास के मुसलसल दौर साग़र-ए-आरज़ू को फोड़ गए मिट गए वो नज़्ज़ारा-हा-ए-जमील लेकिन आँखों में अक्स छोड़ गए हम थे इशरत की गहरी नींदें थीं आए आलाम और झिंझोड़ गए