दिल के बहलाने का सामान न समझा जाए मुझ को अब इतना भी आसान न समझा जाए मैं भी दुनिया की तरह जीने का हक़ माँगती हूँ इस को ग़द्दारी का एलान न समझा जाए अब तो बेटे भी चले जाते हैं हो कर रुख़्सत सिर्फ़ बेटी को ही मेहमान न समझा जाए मेरी पहचान को काफ़ी है अगर मेरी शनाख़्त मुझ को फिर क्यूँ मिरी पहचान न समझा जाए मैं ने ये कब कहा 'रूही' कि मिरे जीवन में मेरे साईं को मिरी जान न समझा जाए