दिल के जज़्बात को होंटों से दबाते क्यों हो आग लग जाने दो शो'लों को बुझाते क्यों हो मुझ को आना है तो वैसे भी चला आउँगा रहने दो राह में फूलों को बिछाते क्यों हो थोड़ी देर और मिरे दिल की सदाएँ सुन लो इतनी जल्दी है जो जाने की तो आते क्यों हो हम-सफ़र तुम नहीं होगे तो भटक जाऊँगा राह में छोड़ के तन्हा मुझे जाते क्यों हो तुम को इन से न मयस्सर कभी ख़ुशबू होगी काग़ज़ी फूलों से गुल-दान सजाते क्यों हो हम ने हर-हाल में उल्फ़त का भरम रखा है बेवफ़ा हम हैं ये इल्ज़ाम लगाते क्यों हो उन को 'फ़रमान' सुनाओ तो कोई बात बने ग़म की रूदाद ज़माने को सुनाते क्यों हो