दिल के सहरा में कोई आस का जुगनू भी नहीं इतना रोया हूँ कि अब आँख में आँसू भी नहीं इतनी बे-रहम न थी ज़ीस्त की दोपहर कभी इन ख़राबों में कहीं साया-ए-गेसू भी नहीं कास-ए-दर्द लिए फिरती है गुलशन की हवा मेरे दामन में तिरे प्यार की ख़ुश्बू भी नहीं छिन गया मेरी निगाहों से भी एहसास-ए-जमाल तेरी तस्वीर में पहला सा वो जादू भी नहीं मौज-दर-मौज तिरे ग़म की शफ़क़ खिलती है मुझ को इस सिलसिला-ए-रंग पे क़ाबू भी नहीं दिल वो कम-बख़्त कि धड़के ही चला जाता है ये अलग बात कि तू ज़ीनत-ए-पहलू भी नहीं ये अजब राहगुज़र है कि चटानें तो बहुत और सहारे को तिरी याद के बाज़ू भी नहीं हादिसा ये भी गुज़रता था मिरी जाँ हम पर पैकर-ए-संग हैं दो, मैं भी नहीं तू भी नहीं