दिल के वीराने में इक फूल खिला रहता है कोई मौसम हो मिरा ज़ख़्म हरा रहता है शब को होगा उफ़ुक़-ए-जाँ से तिरा हुस्न तुलूअ' ये वो ख़ुर्शीद है जो दिन को छुपा रहता है यही दीवार-ए-जुदाई है ज़माने वालो हर घड़ी कोई मुक़ाबिल में खड़ा रहता है कितना चुप-चाप ही गुज़रे कोई मेरे दिल से मुद्दतों सब्त निशान-ए-कफ़-ए-पा रहता है सारे दर बंद हुए शहर में दीवाने पर एक ख़्वाबों का दरीचा ही खुला रहता है