दिल की बातें हैं ये बोझल न बनाऊँ उस को मस्लहत ये है कि कुछ भी न बताऊँ उस को शहर में जा के कहूँ किस से बुरा हाल अपना कोई अपना हो तो अहवाल सुनाऊँ उस को आ बसीं दिल में भी रोज़ी की तमन्नाएँ अब अब कहाँ जाऊँ कि दुनिया से छुपाऊँ उस को हर गली कूचा-ए-क़ातिल है दिल-ए-ईज़ा-तलब कोई मुश्किल हो तो आसान बनाऊँ उस को लम्स मुमकिन नहीं शो'ले का बिना ख़ाक हुए फूल हो सिर्फ़ तो सीने से लगाऊँ उस को