दिल की बेताबियों का बदल हो गई आप जब याद आए ग़ज़ल हो गई ज़िंदगी इतनी तकलीफ़-दह तो न थी जितनी तकलीफ़-दह आज-कल हो गई कितने भौँरों ने इस पर उड़ानें भरीं एक नन्ही कली जब कँवल हो गई क्या तिरी बे-रुख़ी को भुला पाएगी वो मुलाक़ात जो चंद पल हो गई उन से कोई शिकायत न की उम्र भर जाने क्यों इक ज़रा बात कल हो गई उन से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ हुआ सो हुआ मौत की बात बिल्कुल अटल हो गई उन की नज़रें उठीं मेरी नज़रें उठीं बात की बात थी बर-महल हो गई ये बड़ी मेहरबानी हुई आप की सामने जो भी दिक़्क़त थी हल हो गई आरज़ू उन से मिलने की 'मंज़िल' जो थी एक दिन वो हमारी अजल हो गई