दिल की ज़मीं से कौन सी बेहतर ज़मीन है पर जान तू भी हो तो अजब सर-ज़मीन है सर को न फेंक अपने फ़लक पर ग़ुरूर से तू ख़ाक से बना है तिरा घर ज़मीन है रोता फिरा है कौन ये सर-गश्ता ऐ फ़लक जीधर नज़र पड़े है उधर तर ज़मीन है आईने की तरह से नज़र है तू देख ले रौशन-दिलों की घर की मुनव्वर ज़मीन है शायद नहा के आज निचोड़ी है तू ने ज़ुल्फ़ घर की तमाम तेरी मुअंबर ज़मीन है गीती ने ज़ेर-ए-चर्ख़ रखा है सभों को थाम इस कश्ती-ए-जहान की लंगर ज़मीन है ले दिल से चश्म तक मिरे दरिया सा है भरा दोनों घरों की ग़र्क़ सरासर ज़मीन है अव्वल यही है बाइस-ए-ख़ूँ-रेज़ी-ए-जहाँ ज़ेवर है ज़न है ज़ोर है या ज़न ज़मीन है इस तंगना-ए-दहर से जाऊँ किधर निकल ऊधर है आसमान और ईधर ज़मीन है जुज़ ख़ून-ए-कोहकन न उगे वाँ से कोई गुल शीरीं की राह-ए-इश्क़ की पत्थर ज़मीन है रौंदे हो नक़्श-ए-पा की तरह जिस को तुम 'हसन' देखोगे कोई दिन यही सर पर ज़मीन है