दिल की तुर्बत में कोई दर्द दबा है अब भी ऐसा लगता है कोई ज़ख़्म हरा है अब भी हर सितारे को तिरा नाम दे के कह दूँगा मेरी दुनिया का फ़क़त एक ख़ुदा है अब भी मुंतज़िर हूँ कि ये जीने की अमावस गुज़रे रात के सीने में इक चाँद छुपा है अब भी बिन मरासिम भी न वो ग़ैर हुआ मुझ से कभी मैं किसी और का हूँ और वो मिरा है अब भी अपना दुश्मन ही बनाता है मोहब्बत का जुनून सरफ़रोशी की वही इश्क़-अदा है अब भी ख़ौफ़ ये है कि जुदाई के तो दुखड़े हैं हज़ार शुक्र ये है कि मोहब्बत में मज़ा है अब भी याद कर कर के तुझे अब भी दुआ देता हूँ भूलने वाले तिरी ये ही सज़ा है अब भी ज़िंदगी जाँ दे के इक रोज़ मना लेंगे तुझे इतना तड़पा के भी गर मुझ से ख़फ़ा है अब भी रश्क आता है मुझे रस्म-ए-वफ़ा पर 'उल्फ़त' बेवफ़ा होना यहाँ शर्त-ए-वफ़ा है अब भी