दिल किस से मुख़ातिब है कि वीरान बहुत है शैदा है इसे दश्त का अरमान बहुत है गुज़रे तो गुज़र जाए न गुज़रे तो क़यामत दिल वक़्त की इस चाल पे हैरान बहुत है इक उम्र में ख़ुद से मिरी पहचान हुई है जाती हुई उम्रों को ये पहचान बहुत है इस शहर में रहते हैं बिना रूह के पैकर इस शहर में जी लेने का इम्कान बहुत है दिल हाथ से जाएगा ये जाँ भी न रहेगी कर लीजे मगर इश्क़ में नुक़सान बहुत है शब सारी बरसता है ये चुप रहता है दिन भर कुछ रोज़ से मौसम भी परेशान बहुत है तू जा नहीं पाएगी इसे छोड़ के 'मीरा' इस घर में तिरे नाम का सामान बहुत है