दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ फिर मचल उट्ठा है बहलाया हुआ जा तुझे तेरे हवाले कर दिया खेंच ले ये हाथ फैलाया हुआ जिस तरह है ख़ुश्क पत्तों को हवा मेरे हिस्से में है तू आया हुआ ये बगूले हैं कि इस्तिक़बाल-ए-क़ैस फिर रहा है दश्त घबराया हुआ बज़्म में बस इक रुख़-ए-रौशन के फ़ैज़ जो जहाँ मौजूद था साया हुआ क्या करूँ ऐ कार-ए-दुनिया क्या करूँ वो मुझे है फिर से याद आया हुआ