दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज देख हो जाऊँगा ग़ैरों के गले का मैं हार हार फूलों के तू ऐ शोख़-गुल-अंदाम न भेज भर नज़र सूरत-ए-गुल देख तो लें ऐ बे-दर्द हाए सय्याद अभी हम को तह-ए-दाम न भेज जब वो भेजे है मुझे मय तो कहें हैं यूँ ग़ैर ये बहक जाएगा बस और इसे जाम न भेज भेजूँ उस पास जो क़ासिद को दोबारा तो कहे बाज़ आया, नहीं लेने का मैं इनआम न भेज कूचा-ए-यार में पहुँचे हैं तो बस रहने दे जीते-जी याँ से कहीं गर्दिश-ए-अय्याम न भेज दम-ब-दम भेजे है क़ुलियाँ ही को क्या मुँह से लगा लब से भी लब को मिला बोसा-ब-पैग़ाम न भेज ब'अद मुद्दत के तुझे पाया है तन्हा ब-ख़ुदा आज तू काम को याँ से बुत-ए-ख़ुद-काम न भेज दे कभी बोसा-ए-चश्म-ओ-लब-ए-चजाँ-बख़्श भी जाँ सिर्फ़ सौग़ात हमें बोसा-ब-पैग़ाम न भेज गालियाँ तो हैं मोहब्बत की इबारत प्यारे कब मैं कहता हूँ कि लिख कर मुझे दुश्नाम न भेज पर ये धड़का है कि जावे न कहीं ख़त पकड़ा कर के सर-नामे पे तहरीर मिरा नाम न भेज 'जुरअत' अब तुझ से वो रूठा तो मना क्यूँकि मैं लाऊँ तू ही फिर देने लगेगा मुझे इल्ज़ाम न भेज