दिल को रहीन-ए-लज़्ज़त-ए-दरमाँ न कर सके हम उन से भी शिकायत-ए-हिज्राँ न कर सके इस तरह फूँक मेरा गुलिस्तान-ए-आरज़ू फिर कोई तेरे बा'द इसे वीराँ न कर सके महँगी थी इस क़दर तिरे जल्वों की रौशनी हम अपनी एक शाम फ़िरोज़ाँ न कर सके बिछड़े रहे तो और भी रुस्वा करेंगे लोग तुम भी इलाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ न कर सके दिल उन के हाथ से भी गया हम से भी गया शायद वो पास-ए-ख़ातिर-ए-मेहमाँ न कर सके उन पर भी आश्कार हो क्यूँ अपने दिल का हाल हम इस मता-ए-दर्द को अर्ज़ां न कर सके 'आज़म' हज़ार बार लुटे राह-ए-इश्क़ में लेकिन कभी शिकायत-ए-दौराँ न कर सके