दिल को शाइस्ता-ए-एहसास-ए-तमन्ना न करें आप इस अंदाज़-ए-नज़र से मुझे देखा न करें यक-ब-यक लुत्फ़ ओ इनायत का इरादा न करें आप यूँ अपनी जफ़ाओं को तमाशा न करें उन को ये फ़िक्र है अब तर्क-ए-तअल्लुक़ कर के कि हम अब पुर्सिश-ए-अहवाल करें या न करें हाँ मिरे हाल पे हँसते हैं ज़माने वाले आप तो वाक़िफ़-ए-हालात हैं ऐसा न करें उन की दुज़-दीदा-निगाही का तक़ाज़ा है कि अब हम किसी और को क्या ख़ुद को भी देखा न करें वो तअल्लुक़ है तिरे ग़म से कि अल्लाह अल्लाह हम को हासिल हो ख़ुशी भी तो गवारा न करें इस में पोशीदा है पिंदार-ए-मोहब्बत की शिकस्त आप मुझ से भी मिरे हाल को पूछा न करें न रहा तेरी मोहब्बत से तअल्लुक़ न सही निस्बत-ए-ग़म से भी क्या ख़ुद को पुकारा न करें मैं कि ख़ुद अपनी वफ़ाओं पे ख़जिल हूँ 'अख़्तर' वो तो लेकिन सितम ओ जौर से तौबा न करें