दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है चश्म का काम अश्क-बारी है शब-ए-फ़ुर्क़त में मोनिस ओ हमदम बे-क़रारों कूँ आह-ओ-ज़ारी है ऐ अज़ीज़ाँ मुझे नहीं बर्दाश्त संग-दिल का फ़िराक़ भारी है फ़ैज़ सूँ तुझ फ़िराक़ के साजन चश्म-ए-गिर्यां का काम जारी है फ़ौक़ियत ले गया हूँ बुलबुल सूँ गरचे मंसब में दो-हज़ारी है इश्क़-बाज़ों के हक़ में क़ातिल की हर निगह ख़ंजर ओ कटारी है आतिश-ए-हिज्र-ए-लाला-रू सूँ 'वली' दाग़ सीने में यादगारी है