दिल कुछ समझ सका न मुअम्मे जनाब के अंदाज़ ही अजब हैं सवाल-ओ-जवाब के दिल ले के मेरा इश्क़ की सौग़ात बख़्श दी क़ुर्बान जाइए करम-ए-बे-हिसाब के कल काएनात-ए-हुस्न नहीं हुस्न-ए-काएनात रुख़ और भी हैं जल्वा-ए-ज़ेर-ए-नक़ाब के हर ख़ून-ए-आरज़ू से नए हौसले मिले मम्नून हम हैं कोशिश-ए-ना-कामयाब के जान-ए-अज़ीज़ दे के हयात-ए-दवाम ली ज़िंदा हूँ क्यूँ न मारे हुए इंक़लाब के वाइ'ज़ तिरा ख़ुदाई का दा'वा नहीं गुनाह करता है आज फ़ैसले रोज़-ए-हिसाब के क्यूँ कर न मुनफ़रिद हों 'ख़याली' ग़ज़ल के शे'र औराक़ मुंतशिर हैं ये दिल की किताब के