दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए वहशत के जंगल में कब लग परेशाँ हो ग़म के भारों के सँगों में रहिए जो कोई कि है दश्त वहशत का साकिन उसे होश के शहरियों से है नफ़रत ये दीवानगी का निपट ख़ूब आलम है ज़ंजीर की जा उलंगों में रहिए पिंदार-ए-हस्ती सें वहमी ख़यालों ने कसरत की तोहमत लगाए हैं नाहक़ दर-अस्ल में जोश-ए-तूफ़ान-ए-वहदत है जिऊँ मौज-ए-दरिया उमंगों में रहिए इस सर्व-क़ामत के जोश-ए-मोहब्बत में अज़-बस कि आज़ाद सब सें हुआ हूँ मानिंद-ए-क़ुमरी बदन कूँ लगा रा कह याहू के दम भर मलँगों में रहिए नाहक़ 'सिराज' आह-ए-हसरत की आतिश सें हर दम में सौ बार जुम्बाँ सबब किया यकबार शो'ले पे गिरने की तरहों कूँ मालूम करने पतंगों में रहिए