दिल में किसी ख़लिश का गुज़र चाहता हूँ मैं जैसी भी हो बस एक नज़र चाहता हूँ मैं ख़म हो के फिर न उठ्ठे वो सर चाहता हूँ मैं उठ कर जो ख़म न हो वो नज़र चाहता हूँ मैं होते ही तज़्किरा कोई आ जाए रू-ब-रू इतना बुलंद ज़ौक़-ए-नज़र चाहता हूँ मैं मेरा सुकून शौक़ है सब कुछ मिरे लिए नालों को बे-नियाज़ असर चाहता हूँ मैं क्या पूछते हो मक़्सद-ए-इज़हार-ए-आरज़ू शरह-ए-वफ़ा पे नक़्द-ओ-नज़र चाहता हूँ मैं पैहम ग़म-ए-फ़िराक़ से घबरा गया है दिल कुछ इम्तियाज़-ए-शाम-ओ-सहर चाहता हूँ मैं जी चाहता है आग लगा दूँ नक़ाब में जल्वों से इंतिक़ाम-ए-नज़र चाहता हूँ मैं मुहताज-ए-राहबर हूँ जहाँ ख़िज़्र तक 'शकील' ऐसी भी कोई राहगुज़र चाहता हूँ मैं