दिल में तिरे ख़ुलूस समोया न जा सका पत्थर में इस गुलाब को बोया न जा सका बाक़ी हैं इस पे अब भी पुराने ग़मों के अक्स चेहरा तो आँसुओं से भी धोया न जा सका फूलों के जिस्म छेदने दालों से आज तक ख़ुश्बू को बर्छियों में पिरोया न जा सका क्या तर्जुमानी-ए-ग़म-ए-दुनिया करें कि जब फ़न में ख़ुद अपना ग़म भी समोया न जा सका शब-ख़ूँ की रस्म ऐसी पड़ी अहल-ए-शहर में लोगों से लम्हा भर को भी सोया न जा सका आँखों की बस्तियों में भी क्या क़हत-ए-अश्क था चाहा 'कमाल' रोएँ तो रोया न जा सका