दिल मिरा चीख़ रहा था शायद ज़ब्त से दर्द सिवा था शायद एक उलझन सी रही ऑफ़िस में घर पे कुछ छूट गया था शायद दुखती रग को ही बनाया था हदफ़ वार अपनों ने किया था शायद रुख़ मिरा उस की तरफ़ रहता था वो मिरा क़िबला-नुमा था शायद मैं ने पूछा था मोहब्बत है तुम्हें उस ने धीरे से कहा था शायद मैं ने कुछ और कहा था 'आज़म' उस ने कुछ और सुना था शायद