दिल मिरा जब तक किसी के हुस्न पर माइल न था ज़िंदगी में ज़िंदगी का लुत्फ़ कुछ हासिल न था मेरे हिस्से का कोई साग़र सर-ए-महफ़िल न था तेरे मय-नोशों में साक़ी क्या मैं इस क़ाबिल न था जाँ-ब-लब महफ़िल में उन की मैं न था या दिल न था कौन था जो उन के तीर-ए-नाज़ का घाइल न था इक नज़र मिलते ही उन का हो गया क्या क़हर है जिस को हम समझते थे अपना दिल वो अपना दिल न था बहर-ए-उल्फ़त की तलातुम-ख़ेज़ तुग़्यानी न पूछ हर तरफ़ तूफ़ान ही तूफ़ान है साहिल न था ना-उमीदी दर्द-ओ-ग़म रंज-ओ-मुसीबत के सिवा चाहने वालों को उन के और कुछ हासिल न था इक इशारे पर बहाया ख़ून पानी की तरह उन के जाँ-बाज़ों में कोई मुझ सा दरिया-दिल न था सहल कर दी ज़िंदगी उन की उमीद-ए-दीद ने वर्ना उन के हिज्र में मरना कोई मुश्किल न था आह 'साबिर' जब हुआ मेरा सफ़ीना ग़र्क़-ए-आब मैं था मजबूरी थी और कोई लब-ए-साहिल न था