दिल मुज़्तरिब है और परेशान जिस्म है उस के बग़ैर बे-सर-ओ-सामान जिस्म है अब हो नहीं सकेगा मुदावा किसी तरह वो जो कहीं नहीं है तो बे-जान जिस्म है दिल तो जुनूँ के खेल में मसरूफ़ है मगर उस की नवाज़िशात पे हैरान जिस्म है मैं ने बना दिया है जिसे इश्क़ में ग़ज़ल दिल उस का है बयाज़ तो दीवान जिस्म है अब उस के ग़म से मुझ को मिलेगी कहाँ नजात दिल पासबाँ है और निगहबान जिस्म है